Saturday, 26 April 2014

राष्ट्र पहले

आज बहुत आवश्यक हो गया है की हम धार्मिक होने से अधिक
राष्ट्रवादी बनें ! क्योंकि जब सुन्दर और सुदृढ़ राष्ट्र हमारे पास
होगा तभी हमारा धर्म परवान चढ़ेगा और सच्चे अर्थों में हम
धार्मिक हो पायेंगे । अगर राष्ट्र ही अस्त व्यस्त और अस्थिर होगा
तो कदापि धर्म जीवित नहीं रह पायेगा इस इस छोटे से सूत्र में बहुत
गंभीर अर्थ छिपा है जिसे समझने की आज नितांत आवश्यकता है ।

Friday, 7 March 2014

Sunday, 2 March 2014

Saturday, 1 March 2014

Life introduction of Dr.Bindu ji Maharaj

जन्म - 7 फ़रवरी 1958 ई.
जन्म स्थान - ग्राम रामपुर ,पोस्ट खन्देवरा , जिला कौशाम्बी , उत्तर प्रदेश
डॉ बिन्दूजी महाराज कवी , साहित्यकार एवं आयुर्वेदाचार्य के साथ सुप्रसिद्ध तंत्र मन्त्र सम्राट हैं
तंत्र विज्ञान की आपने पूर्ण वैज्ञानिक विवेचना करते हुए तमाम प्रकार की साधनाए करके अनेकों
दुर्लभ सिद्धियाँ प्राप्त की हैं और अपने तांत्रिक तथा आयुर्वेदीय ज्ञान के द्वारा अनेकों असाध्य रोगों से ग्रस्त
रोगियों को जीवन दान दिया है । आपने एड्स (एच आई वी ) और कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों से
अनेकों लोगों को मुक्त किया है ।
आप जहां एक कुशल चिकित्सक हैं वहीँ एक जाने माने इतिहास वेत्ता भी हैं आपने कुम्भ मेलों पर बहुत
काम किया है और कुम्भ मेलों तथा साधू संतों के अखाड़ों का प्रमाणिक इतिहास लिखा है आपकी " कुम्भ
महापर्व और अखाड़े एक विवेचन " पुस्तक काफी लोकप्रिय हुई है तथा आज वह सबसे प्रमाणिक कृति
मानी जाती है । अर्ध कुम्भ मेले का कोई विशेष साहित्य न होने के कारण लोग हमेशा अर्ध कुभ को लेकर
असमंजश की स्थिति में रहते थे जिसकी पूर्ति हेतु आपने अथक प्रयास करके " अर्ध कुम्भ परम्परा एवं इतिहास"
नामक कृति जनमानस के सामने प्रगट किया है ।साथ ही साथ आपने बारह कुम्भ मेलों पर कार्य करते हुए उन्हें
चिन्हित करने एवं उनके साक्ष्य जुटाने हेतु आज भी सतत प्रयत्नशील हैं । इसी क्रम में आपने छत्तीस गढ़ राज्य के राजिम
कुम्भ मेला पर विशेष शोध कार्य करके " राजिम कुम्भ की प्राचीनता एवं प्रमाणिकता " नामक कृति की रचना करके एक
बहुत बड़ा उपकार कुम्भ मेलों के इतिहास पर किया है । आपने हरिद्वार , प्रयागराज (इलाहाबाद ) ,उज्जैन और त्र्यम्बकेश्वर
नाशिक कुम्भ मेलों के अतिरिक्त कुम्भ कोंडम ( तामिलनाडू ) और राजिम ( छत्तीसगढ़ ) तथा नेपाल राष्ट्र में लगाने वाले अमृत
महोत्सवों को पुरातात्विक , साहित्यिक , पुराणिक , भौगोलिक तथा ज्योतिषीय तत्वों , साक्ष्यो की विवेचना करते हुए यह
सिद्ध किया है ये अमृत महोत्सव प्राचीन कुम्भ महापर्व थे और हैं ।
डॉ बिन्दू जी महाराज एक कुशल एवं सफल वैज्ञानिक भी हैं आपने अनेकों धार्मिक तथा तांत्रिक सिधान्तों  को विज्ञान की
कशोटी पर काश कर सत्य सिद्ध किया है । आप एक अच्छे क्वाइन्स कलेक्टर ( मुद्रा संग्राहक ) भी हैं ।आपका साधनामय
जीवन अनेकों विशेषताओं से भरा पडा है । आपका सम्मान करते हुए देश की अनेकों साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं ने शताधिक
बार आपका सम्मान किया है । आप आचार्य श्रीचन्द्र कविता महाविधालय एवं शोध संस्थान , हंस वाहिनी साहित्यिक संस्था ,
हिंन्दी हाइकु क्लब , षष्ट दर्शन संत महंत संघ और भारतीय संत समाज संघ जैसी अनेकों संश्थाओं के संस्थापक एवं संचालक
हैं ।आप एक उदारमना तपस्वी संत हैं आपके कार्यो का सम्मान करते हुए देश के साहियिक जगत ने आपके पचासवें जन्म दिन
के अवाषर पर एक विशाल अभिनन्दन ग्रन्थ प्रासिद्ध साहित्यकार दिवाकर पाण्डेय के कुशल सम्पादन में " फक्कड़ मसीहा " के
नाम से प्रकाशित किया है । साथ ही अभी हाल में ही कवी साहित्यकार एवं मारवाड़ी हिंदी विधालय के वरिष्ठ प्राध्यापक अशोक
दुबे ने आपके जीवन पर प्रकाश डालते हुए " बचपन से पचपन तक , जीवन गंगा प्रवाह " नामक कृति लिखा है । कुल मिला कर डॉ
बिन्दू जी महाराज इस युग के महान वैज्ञानिक संत एवं इतिहासकार है और उनका जीवन गागर में सागर की भाँती है ।

Sunday, 23 February 2014

Dr. Bindu ji Maharaj

माँ भवानी विश्व का कल्याण करे।

राजिम कुंभ एक ख़ोज

राजिम कुम्भ एक खोज
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
राजिम कुम्भ मेला छतीस गढ़ राज्य में रायपुर से 45 किलोमीटर की दूरी
पे स्थित प्राचीन एतिहासिक नगरी राजिम में चित्रोत्पला गंगा अर्थात महानदी एवं सोंढूर और पैरी नदी के पावन तट पर भगवान् भूतेश्वर शिव कुलेश्वर महादेव मंदिर के निकट और भगवान् राजीवलोचन तथा माता राजिम के पवन चरणों में प्रतिवर्ष संपन्न होता है ।
राजिम कुम्भ मेला की साड़ी व्यवस्था छतीसगढ़ शासन के द्वारा संपन्न कराया जाता है । जिसमें संतो को आमंत्रित करने से लेकर सारे मेले का प्रभार धर्मस्व मंत्री श्री ब्रिजमोहन अग्रवाल के द्वारा सुचारू रूप से संचालित होता आ रहा है ।वैसे देखा जाय तो इस मेले को चिन्हित कर इसे कुम्भ मेला का स्वरुप देने का सारा श्रेय ब्रिजमोहन आगरवाल जी को ही जाता है ।
धर्माश्वमंत्री ब्रिजमोहन अग्रवाल जी एवं ओ यस डी गिरीश बिस्सा तथा सुधीर दुबे जी के विशेष निवेदन पर कुम्भ मेलों के महान इतिहास बेत्ता एवं शोध करता प्राख्यात साहित्यकार तथा श्रीपंचाती अखाड़ा बड़ा उदासीन के महंत एवं निर्वाणपिठाशिश्वर योगिराज तंत्र सम्राट डॉ बिन्दूजी महाराज " बिन्दू " जी ने राजिम कुम्भ पर विशेष एतिहासिक , पुरातात्विक एवं पौराणिक शाक्षो को एकत्र कर " राजिम कुम्भ की प्राचीनता एवं प्रमाणिकता " नामक पुस्तक का लेखन कर इस कुम्भ मेला के इतिहास को सुव्यस्थित किया है और यह सिद्ध कर दिया की विश्व के धरातल पर लगाने वाले प्राचीन 12 कुम्भ मेलों में एक यह कमल क्षेत्र राजिम भी है ।
यद्यपि आम जनमानस के बीच केवल चार कुम्भ मेला हरिद्वार , इलाहाबाद ,उज्जैन और त्र्यम्बकेश्वर नाशिक ही अधिक प्रसिद्द और लोक प्रिय हैं तथापि इतिहास इस बात को नकार नहीं सकता है की बारह स्थानों पर कभी बारह कुम्भ मेला हुआ करते थे जो कालांतर में बिलुप्तप्राय हो गए थे जिन्हें डॉ बिन्दूजी महाराज ने काफी प्रयाशों के और संघर्षों के बिच अपने शोध का बिषय बनाया और विश्व के इतिहास पटल पर सात कुम्भ मेलों के स्थानों को चिन्हित कर प्रमाणित किया है यह एक श्लाघनीय कार्य है ।
डॉ बिन्दूजी महाराज " बिन्दू " द्वारा लिखित अन्य एक पुस्तक " कुम्भ महापर्व और अखाड़े एक विवेचन " भी काफी लोकप्रिय और कुम्भ मेलों के इतिहास में मील का पत्थर सिद्ध हुई है ।
राजिम कुम्भ बहुत ही सुन्दर , दर्शनीय और धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष प्रदायक है इस कुम्भ का पुण्य लाभ प्रत्येक मानव को लेना ही चाहिए एइसा अवसर जीवन में बार बार नहीं मिलता है ।
@@@@@ ब्रम्हचारी श्रीकांत उदासीन "पियुष "