माँ भवानी विश्व का कल्याण करे।
Sunday, 23 February 2014
राजिम कुंभ एक ख़ोज
राजिम कुम्भ एक खोज
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राजिम कुम्भ मेला छतीस गढ़ राज्य में रायपुर से 45 किलोमीटर की दूरी
पे स्थित प्राचीन एतिहासिक नगरी राजिम में चित्रोत्पला गंगा अर्थात महानदी एवं सोंढूर और पैरी नदी के पावन तट पर भगवान् भूतेश्वर शिव कुलेश्वर महादेव मंदिर के निकट और भगवान् राजीवलोचन तथा माता राजिम के पवन चरणों में प्रतिवर्ष संपन्न होता है ।
राजिम कुम्भ मेला की साड़ी व्यवस्था छतीसगढ़ शासन के द्वारा संपन्न कराया जाता है । जिसमें संतो को आमंत्रित करने से लेकर सारे मेले का प्रभार धर्मस्व मंत्री श्री ब्रिजमोहन अग्रवाल के द्वारा सुचारू रूप से संचालित होता आ रहा है ।वैसे देखा जाय तो इस मेले को चिन्हित कर इसे कुम्भ मेला का स्वरुप देने का सारा श्रेय ब्रिजमोहन आगरवाल जी को ही जाता है ।
धर्माश्वमंत्री ब्रिजमोहन अग्रवाल जी एवं ओ यस डी गिरीश बिस्सा तथा सुधीर दुबे जी के विशेष निवेदन पर कुम्भ मेलों के महान इतिहास बेत्ता एवं शोध करता प्राख्यात साहित्यकार तथा श्रीपंचाती अखाड़ा बड़ा उदासीन के महंत एवं निर्वाणपिठाशिश्वर योगिराज तंत्र सम्राट डॉ बिन्दूजी महाराज " बिन्दू " जी ने राजिम कुम्भ पर विशेष एतिहासिक , पुरातात्विक एवं पौराणिक शाक्षो को एकत्र कर " राजिम कुम्भ की प्राचीनता एवं प्रमाणिकता " नामक पुस्तक का लेखन कर इस कुम्भ मेला के इतिहास को सुव्यस्थित किया है और यह सिद्ध कर दिया की विश्व के धरातल पर लगाने वाले प्राचीन 12 कुम्भ मेलों में एक यह कमल क्षेत्र राजिम भी है ।
यद्यपि आम जनमानस के बीच केवल चार कुम्भ मेला हरिद्वार , इलाहाबाद ,उज्जैन और त्र्यम्बकेश्वर नाशिक ही अधिक प्रसिद्द और लोक प्रिय हैं तथापि इतिहास इस बात को नकार नहीं सकता है की बारह स्थानों पर कभी बारह कुम्भ मेला हुआ करते थे जो कालांतर में बिलुप्तप्राय हो गए थे जिन्हें डॉ बिन्दूजी महाराज ने काफी प्रयाशों के और संघर्षों के बिच अपने शोध का बिषय बनाया और विश्व के इतिहास पटल पर सात कुम्भ मेलों के स्थानों को चिन्हित कर प्रमाणित किया है यह एक श्लाघनीय कार्य है ।
डॉ बिन्दूजी महाराज " बिन्दू " द्वारा लिखित अन्य एक पुस्तक " कुम्भ महापर्व और अखाड़े एक विवेचन " भी काफी लोकप्रिय और कुम्भ मेलों के इतिहास में मील का पत्थर सिद्ध हुई है ।
राजिम कुम्भ बहुत ही सुन्दर , दर्शनीय और धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष प्रदायक है इस कुम्भ का पुण्य लाभ प्रत्येक मानव को लेना ही चाहिए एइसा अवसर जीवन में बार बार नहीं मिलता है ।
@@@@@ ब्रम्हचारी श्रीकांत उदासीन "पियुष "
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राजिम कुम्भ मेला छतीस गढ़ राज्य में रायपुर से 45 किलोमीटर की दूरी
पे स्थित प्राचीन एतिहासिक नगरी राजिम में चित्रोत्पला गंगा अर्थात महानदी एवं सोंढूर और पैरी नदी के पावन तट पर भगवान् भूतेश्वर शिव कुलेश्वर महादेव मंदिर के निकट और भगवान् राजीवलोचन तथा माता राजिम के पवन चरणों में प्रतिवर्ष संपन्न होता है ।
राजिम कुम्भ मेला की साड़ी व्यवस्था छतीसगढ़ शासन के द्वारा संपन्न कराया जाता है । जिसमें संतो को आमंत्रित करने से लेकर सारे मेले का प्रभार धर्मस्व मंत्री श्री ब्रिजमोहन अग्रवाल के द्वारा सुचारू रूप से संचालित होता आ रहा है ।वैसे देखा जाय तो इस मेले को चिन्हित कर इसे कुम्भ मेला का स्वरुप देने का सारा श्रेय ब्रिजमोहन आगरवाल जी को ही जाता है ।
धर्माश्वमंत्री ब्रिजमोहन अग्रवाल जी एवं ओ यस डी गिरीश बिस्सा तथा सुधीर दुबे जी के विशेष निवेदन पर कुम्भ मेलों के महान इतिहास बेत्ता एवं शोध करता प्राख्यात साहित्यकार तथा श्रीपंचाती अखाड़ा बड़ा उदासीन के महंत एवं निर्वाणपिठाशिश्वर योगिराज तंत्र सम्राट डॉ बिन्दूजी महाराज " बिन्दू " जी ने राजिम कुम्भ पर विशेष एतिहासिक , पुरातात्विक एवं पौराणिक शाक्षो को एकत्र कर " राजिम कुम्भ की प्राचीनता एवं प्रमाणिकता " नामक पुस्तक का लेखन कर इस कुम्भ मेला के इतिहास को सुव्यस्थित किया है और यह सिद्ध कर दिया की विश्व के धरातल पर लगाने वाले प्राचीन 12 कुम्भ मेलों में एक यह कमल क्षेत्र राजिम भी है ।
यद्यपि आम जनमानस के बीच केवल चार कुम्भ मेला हरिद्वार , इलाहाबाद ,उज्जैन और त्र्यम्बकेश्वर नाशिक ही अधिक प्रसिद्द और लोक प्रिय हैं तथापि इतिहास इस बात को नकार नहीं सकता है की बारह स्थानों पर कभी बारह कुम्भ मेला हुआ करते थे जो कालांतर में बिलुप्तप्राय हो गए थे जिन्हें डॉ बिन्दूजी महाराज ने काफी प्रयाशों के और संघर्षों के बिच अपने शोध का बिषय बनाया और विश्व के इतिहास पटल पर सात कुम्भ मेलों के स्थानों को चिन्हित कर प्रमाणित किया है यह एक श्लाघनीय कार्य है ।
डॉ बिन्दूजी महाराज " बिन्दू " द्वारा लिखित अन्य एक पुस्तक " कुम्भ महापर्व और अखाड़े एक विवेचन " भी काफी लोकप्रिय और कुम्भ मेलों के इतिहास में मील का पत्थर सिद्ध हुई है ।
राजिम कुम्भ बहुत ही सुन्दर , दर्शनीय और धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष प्रदायक है इस कुम्भ का पुण्य लाभ प्रत्येक मानव को लेना ही चाहिए एइसा अवसर जीवन में बार बार नहीं मिलता है ।
@@@@@ ब्रम्हचारी श्रीकांत उदासीन "पियुष "
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